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लेखनी कहानी -11-Sep-2022 सौतेला

भाग : 5 


संपत गायत्री के सौन्दर्य को देखकर हतप्रभ रह गया । इतना मासूम चेहरा भी किसी हसीना का हो सकता है, उसने सोचा नहीं था । उसने तो यही सुना था कि हुस्न वाले बड़े कातिल होते हैं मगर यहां तो मामला एकदम उलट था । गायत्री की मासूमियत किसी मासूम बच्चे की तरह उसके सामने थी । इतना सच्चा , सरल, सादगीपूर्ण हुस्न कभी देखा नहीं था उसने । वैसे भी संपत बड़ा ही शर्मीला था । लड़कियों को ताकने की आदत नहीं थी उसकी । इसलिए उसे हुस्न और उसके हथकंडों के बारे में ज्यादा कुछ पता भी नहीं था । 

वह गायत्री को एकटक देखता रहा । गायत्री की पलकें झुकी हुई थीं । होंठ बंद थे । गायत्री पता नहीं किस दुनिया की सैर कर रही थी । संपत ने आगे बढकर इस सौदर्य पर अपने अधरों से एक टीका लगाना चाहा था मगर उसके सांसों की छुअन ने उसके इरादे व्यक्त कर दिए थे । गायत्री ने शरमा कर अपना सिर झुका लिया था और संपत का यह प्रयास विफल हो गया । संपत को अभी धीरज का इम्तिहान और देना था शायद । 

उसने गायत्री का हाथ अपने दोनों हाथों में ले लिया और उसे धीरे धीरे सहलाने लगा । आज मिलन की रात को संपत अपनी भावनाएं रोक नहीं पाया था । उसके हृदय का गुबार जो इतने दिनों से बांध के पानी की तरह संचित था ,पाल तोड़कर बह निकला । संपत कहने लगा "गायत्री, मुझे गलत मत समझना । आज की रात जब हर दुल्हन की आंखों में हजारों रंगीन सपने सजे होते हैं , जब वह सब कुछ भूलकर अपने पिया की बांहों में समा जाती है तब मैं ऐसी बातें कर रहा हूं । लेकिन मैं भी क्या करूं ? मैं अपने दिल से मजबूर हूं । यद्यपि मैं इस दिल को बहुत समझाता हूं मगर यह समझता ही नहीं है । हालांकि मैं यह भी मानता हूं कि नई मां ने मुझे अपने पुत्र से भी बढकर स्नेह दिया है मगर लोगों ने जो शक का कीड़ा बचपन से मेरे मस्तिष्क में भर दिया है वह कभी मरा नहीं और मैं "सौतेलेपन" के अहसास की चिता में आजीवन दग्ध रहा हूं । मेरी सगी छोटी बहन अनीता मुझे ही दोष देती है और कहती है कि मैं ही गलत हूं , मगर पता नहीं क्यों मेरा दिल इस बात को स्वीकार कर ही नहीं पाया कभी । मैं नई मां को सगी मां मान ही नहीं पाया इसलिए मैं प्यार के तपते मरुस्थल में नंगे पांव भटकता ही रहा और दग्ध होता रहा हूं । अब तुम मेरी जिंदगी में एक नखलिस्तान बनकर आई हो तो मैं यह सोचता हूं कि अब मेरे जीवन में प्यार की बरसात होने वाली है । तुम अपने स्नेह की बरसात से इस तप्त मरुस्थल को सिंचित करके इसे उपवन में तब्दील कर दो । मेरी जिंदगी को खुशियों की सौगातें दे दो । दिल के खाली कोनों को प्रेम से परिपूर्ण कर दो । आज के दिन मैं तुमसे बस इतनी सी गुजारिश करता हूं" । कहते कहते संपत का गला भर आया था । 

गायत्री संपत की मनोदशा समझ रही थी । उसे महसूस हो रहा था कि संपत केवल गलतफहमी का शिकार है । नई मां का व्यवहार अपनी सगी मां से भी मधुर था लेकिन संपत के दिमाग में सौतेलेपन का कीड़ा घुसा हुआ है जो रह रहकर उसे काट रहा है । अनीता को कभी सौतेलेपन का अहसास नहीं हुआ था । इसका मतलब है कि कमी संपत में है नई मां में नहीं । अब उसे संपत के दिमाग से इस कीड़े को निकाल बाहर करना है और परिवार में जो दरार सी आ गई थी उसे भरना है । उसने संपत का सिर अपनी गोदी में रख लिया और उसके सिर पर हाथ फिराने लगी । संपत की आंखों से झरना फूट पड़ा । उसके दिल का मैल आंखों के रास्ते धीरे धीरे बाहर निकल रहा था । इससे वह हल्का हो गया था । उसका गुबार बाहर निकल रहा था । बरसों की जमी बर्फ पिघलने लगी थी । आज उसे सुखद अहसास हो रहा था । उसे गायत्री की गोद में कब नींद आ गई,  पता ही नहीं चला । गायत्री उसके सिर को अपनी गोदी में रखकर रात भर बैठी रही और सिर को सहलाती रही । बैठे बैठे ही कब उसकी भी आंख लग गई,  उसे भी पता नहीं चला । सुबह जब कमरे के बाहर से अनीता की आवाज सुनाई दी तब दोनों की नींद खुली । संपत का चेहरा कितना मासूम सा लग रहा था ?  एक अबोध बालक की तरह । जब दिल में कोई मैल नहीं हो तो आदमी का चेहरा मां गंगा की तरह निर्मल और पवित्र सा लगता है । 

संपत उठकर जाने लगा तो गायत्री ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा "मैं अगर कुछ मांगूं तो क्या आप देंगे" ? 

संपत ने सीधे गायत्री की आंखों में झांककर कहा "जान भी मांगोगे तो पल भर भी नहीं लगाऊंगा" । 
"नहीं, जान की जरूरत नहीं है । वह तो मेरी ही है, अब आपकी कहां रही है ? मैं तो बस एक वचन चाहती हूं कि मां के मामले में आप हरदम मेरी बात मानोगे । बस, और कुछ नहीं चाहिए" । 

संपत ने एक मिनट सोचा और गायत्री का हाथ चूम लिया । वह कहने लगा "सिर्फ मां के मामले में ही नहीं अपितु हर मामले में मैं अब केवल तुम्हारी बात ही मानूंगा" । और उसने गायत्री को बांहों में कस लिया । 
"तो आओ , मेरे साथ चलो । मां और बाबूजी का आशीर्वाद लेना है" 
संपत के होठों पर एक मुस्कान तैर गई । उसे विश्वास हो गया कि उसने अपना भविष्य सही हाथों में सौंपा है । दोनों जने अपने कमरे से बाहर निकले । सामने ही मां बैठी थी और बाबूजी चाय पी रहे थे । गायत्री संपत को पहले नई मां के पास ले गई । दोनों ने नई मां के चरण स्पर्श किये । नई मां का हृदय सागर की तरह हिलोरें लेने लगा । उसे महसूस हो रहा था कि उसका बेटा अब उसके पास लौट आया है । नई मां ने कृतज्ञ नजरों से गायत्री की ओर देखा और उसे हजारों आशीष दे डाले । नई मां ने अपनी दोनों भुजाएं फैला दीं और दोनों जने उनमें समा गये । बड़ा अद्भुत दृश्य था । अनीता, दौलत भी वहीं पर बैठे थे , वे भी मां, भैया और भाभी से लिपट गये । राम भरत कैकेयी मिलन का सा दृश्य था । फिर दोनों ने बाबूजी का भी आशीर्वाद लिया । 

अनीता की आंखें बरबस बरस पड़ी । अनीता की निगाहों में गायत्री का कद बहुत बढ़ गया था । जो काम वह बरसों से नहीं कर पाई थी उसे एक ही रात में गायत्री ने कर दिया था । यह वाकया आश्चर्यजनक था । या यों कहें कि घोर आश्चर्यजनक था । बाबूजी का चेहरा भी बता रहा था कि उन्हें कितना संतोष मिल रहा था । दौलत तो भाभी से लिपट ही गया था । 

नई मां ने 21 रुपये बेटा बहू पर उसारे और उन्हें अलग रख दिया । जब वह मंदिर जायेगी तब वह पंडिताइन को दे देगी । आज तो वह अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकती थी इस अनमोल पल पर । भोर की किरणें आज इस परिवार में प्रकाश पुंज लेकर आई थीं शायद । शायद क्यों , सच में लाईं थीं । 

नई मां ने आशीर्वाद के रूप में एक सोने का हार गायत्री को दे दिया । गायत्री नई मां के चरणों में बैठ गई । गायत्री के इस व्यवहार को देखकर नई मां गदगद हो गई । 

क्रमश : 

श्री हरि 
14.9.22 

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8 Comments

Simran Bhagat

25-Sep-2022 08:59 AM

Bahut khoob

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Pratikhya Priyadarshini

25-Sep-2022 12:19 AM

Bahut khoob 🙏🌺

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Seema Priyadarshini sahay

15-Sep-2022 05:23 PM

बहुत खूबसूरत

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